एमी - भाग 1 Pradeep Shrivastava द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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एमी - भाग 1

भाग -1

प्रदीप श्रीवास्तव

मुझे बाइक चलाना बहुत पसंद है। बहुत ज़्यादा। जुनून की हद तक। जब मैं एट स्टैंडर्ड में पहुँची तो स्कूल जाने के लिए फ़ादर ने लेडी बर्ड साइकिल दी। उन्हें यक़ीन था कि नई साइकिल पाकर मैं ख़ुश होऊँगी। लेकिन इसके उलट मुझे ग़ुस्सा आया। क्योंकि मैंने बहुत पहले से ही अपनी पसंद बताते हुए कहा था कि मुझे साइकिल नहीं चाहिए। इसलिए साइकिल देखते ही नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए मैंने उनसे कहा कि मुझे वह बाइक ले देंगे। लेकिन वह नाराज़ हो गए। मदर भी फ़ादर की तरह ही नाराज़ हुईं कि, "क्या मूर्खता है। तुम अभी बहुत छोटी हो। टेंथ स्टैंडर्ड में जाओगी तब सोचेंगे कि तुम्हें स्कूटी दी जाए या और दो-तीन साल तुम साइकिल से ही स्कूल जाओ।"

मैंने ज़िद की तो डपटते हुए मदर ने कहा, "एमी तुम्हें ज़िद नहीं करनी चाहिए, तुम एक अच्छी बच्ची हो।" मदर की डाँट खाकर मैं चुप ज़रूर हो गई थी, लेकिन बाइक के प्रति मेरा लगाव और बढ़ गया। न्यूटन का थर्ड लॉ यहाँ काम कर रहा था। क्रिया के बराबर प्रतिक्रिया हो रही थी। समय के साथ यह लगाव बढ़ता रहा। उस समय तक मेरा भाई पढ़ने के लिए दिल्ली चला गया था। वह एडमिशन वग़ैरह के बाद अपनी बाइक भी ले गया था। घर में उसके बाद बस एक स्कूटर ही रह गई थी।

फ़ादर सुबह उसे लेकर ऑफ़िस चले जाते थे। और शाम को हमेशा ही देर से आते। महीने में केवल संडे का ही दिन ऐसा होता था जब वह दिन में ड्रिंक नहीं करते थे। और चर्च जाते थे। हम लोगों को भी साथ ले जाते थे। बाक़ी दिन वह ड्रिंक करके ही आते, डिनर करके फिर और पीते। जिस दिन वह डिनर के बाद कम पीते उस दिन मदर से निश्चित ही झगड़ा करते। बिना किसी बात ही के हंगामा खड़ा करते। मदर के कैरेक्टर पर लांछन लगाते। फिर मदर भी अपना आपा खो बैठती थीं।

मैं जब छोटी थी तब तो डर कर घर के किसी कोने में छिप जाती थी। डर के मारे थर-थर काँपती थी। कई बार बेहोश भी हो जाती थी। उल्टियाँ होने लगती थीं। एक बार मदर मुझे मेरी इस प्रॉब्लम के लिए अपने हॉस्पिटल ले गईं। चेकअप कराने के लिए। वह एक मिशनरी हॉस्पिटल में आज भी नर्स हैं। वहाँ डॉक्टर ने फ़ियर फ़ोबिया बताया। उन्होंने कुछ दवाएँ दीं और एक मनोचिकित्सक से चेकअप कराने के लिए भी कहा। मेरी इस प्रॉब्लम से मदर काफ़ी डर गई थीं।

उन्होंने जब फ़ादर को यह बात बताई तो वह मेरे सिर पर हाथ रख कर बोले, "सॉरी माय चाइल्ड।" बस इसके बाद कुछ नहीं बोले। घर के बाहर चले गए। अगले दिन फिर सब कुछ वही। ड्रिंक, मदर से झगड़ा।

यह सब तब भी होता रहा जब मैं इलेवंथ में पहुँच गई। मुझे फिर नई साइकिल दिये जाने की तैयारी थी। लेकिन मैंने साफ़ मना कर दिया कि मुझे साइकिल नहीं चाहिए। देनी है तो मुझे टू-व्हीलर ही दीजिए। वह भी बाइक, नहीं तो मैं पैदल ही जाऊँगी, और जब ख़ुद जॉब करूँगी तो सबसे पहले बाइक ही ख़रीदूँगी। लेकिन मेरी बात बिलकुल भी नहीं मानी गई। जबकि मैंने इस बीच छिप-छिप कर फ़ादर का स्कूटर चलाना सीख लिया था।

जब वह नशे में धुत्त रहते थे तो मैं चुपके से चाबी निकाल कर पूरी कॉलोनी में ख़ूब चलाती। तब मदर की अक्सर नाइट ड्यूटी ही रहती थी। अब तक फ़ियर फ़ोबिया की मेरी प्रॉब्लम भी ख़त्म हो चुकी थी। मगर पैरेंट्स की लड़ाई नहीं ख़त्म हुई थी। फ़ादर की ड्रिंक करने की आदत और बढ़ गई थी। जल्दी ही मदर ने एक रास्ता निकाला। वह लड़ाई से बचने के लिए चाहतीं कि फ़ादर ड्रिंक इतनी ले लिया करें कि झगड़ा करने के लायक़ ना रहें। नशे में गहरी नींद सो जाएँ। ऐसी स्थिति में वह उन्हें ख़ुद और पिला देतीें। उनका यह प्लान सक्सेस रहा। फ़ादर नशे में धुत्त हो सो जाते थे।

जब मैं बीएससी प्रीवियस में थी तब भी यह सब चलता रहा। फ़ादर हमेशा अपने बीच एक थर्ड पर्सन के होने की बात करते, मदर को गाली देते हुए मुझे और जस्टिन को अपनी संतान मानने से ही मना कर देते। यह सुनकर मुझे बड़ा ग़ुस्सा आता। मैं ख़ुद को अपने कमरे में बंद कर लेती। एक दिन ऐसी स्थिति में मदर ने बहुत ही उग्र रूप धारण कर लिया। वह फ़ादर से हाथापाई पर उतर आईं। उन्होंने उन्हें पूरी ताक़त से धक्का देकर बेड पर गिरा दिया। और चीखती हुईं बोलीं, "कल सुबह मेरे साथ हॉस्पिटल चलो। एमी को भी ले चलो। डीएनए टेस्ट करा लेंगे कि एमी किसकी बेटी है। अगर तुम्हारी बात सही हुई तो मैं तुम्हें, बच्चों को छोड़कर हमेशा के लिए चली जाऊँगी। नहीं तो तुम दोबारा फिर कभी यह बात नहीं करोगे।"

मदर कि इस बात पर फ़ादर और भी ज़्यादा भड़क उठे। वह बेड पर से उठने की कोशिश में फिर उसी पर लुढ़क गए। इससे उनकी खीझ, ग़ुस्सा और बढ़ गया। चीखते हुए मदर को गंदी-गंदी गालियाँ देने लगे। कहा, "तुम तो यही चाहती हो कि मैं तुझे फ़्री कर दूँ और तू उस सूअर के साथ ...छीः, ऐसी गंदी-गलीज़ बातें कहीं कि वह मेरी ज़ुबान पर कभी नहीं आ पातीं। ग़ुस्से में उन्होंने पुलिस में मदर के अगेंस्ट कंप्लेंट करने की बात कही। बोले, "तुमने मुझे मारने की कोशिश की। मैं तुझे नहीं छोड़ूँगा। वह लड़खड़ाती ज़ुबान में गंदी-गंदी बातें करते जा रहे थे। मैं कमरे में बंद सुनती रही। मदर भी दूसरे कमरे में चली गईं। उन्हें तैयार होना था। नाइट शिफ़्ट में उनकी ड्यूटी थी।

वह तैयार हो ही रही थीं कि पुलिस आ गई। फ़ादर ने हंड्रेड नंबर डायल कर दिया था। मदर और मैं पुलिस देखकर हक्का-बक्का हो गए कि पुलिस क्यों? मदर ने पुलिस ऑफ़िसर से कहा, "कोई बात नहीं हुई है। इन्होंने ड्रिंक कर रखी है। नशे में हैं, ग़लती से रिंग कर दिया होगा। मैं उनकी तरफ़ से माफ़ी माँगती हूँ।" 

लेकिन पुलिस अड़ गई कि, "उन्हें सामने लाइए, वह कह रहे थे कि उन्हें उनकी मिसेज और डॉटर मिलकर मार रही हैं। उनकी जान ख़तरे में है। उन्हें बचाइए। इस लिए उन्हें सामने लाइए। हम बिना हक़ीक़त जाने नहीं जाएँगे। रिंग करने वाले से बात करनी ही है।" 

विवश होकर मदर पुलिस को लेकर बेडरूम में पहुँचीं। फ़ादर तब-तक गहरी नींद में सो रहे थे। खर्राटे कमरे में गूँज रहे थे। पूरा रूम भयानक बदबू से भरा हुआ था। उनके पैंट की ज़िप खुली हुई थी। पैर बेड से नीचे लटके हुए थे। पैंट बुरी तरह भीगी हुई थी। पेशाब करने के बाद भी वह गीले कपड़ों में सो रहे थे।

पुलिस के सामने हम शर्म से गड़े जा रहे थे। उनकी हालत देखकर पुलिस समझ गई कि मेरी मदर सच बोल रही हैं। लेकिन वह बेवजह फोन करने के लिए सख़्त नाराज़ होने लगी। कहने लगी, "दोबारा ऐसा किया तो अच्छा नहीं होगा। बंद कर देंगे।" मदर ने कई बार सॉरी बोलते हुए उन्हें एक हज़ार रुपए देकर शांत किया। मदर उस दिन ऑफ़िस नहीं गईं। फोन कर दिया कि तबीयत बहुत ख़राब है। उनके सीनियर ने इस तरह अचानक ही मना करने पर बहुत डाँटा था। मदर उस दिन बहुत रोईं। मैं भी। हम उस दिन अपनी बहुत इंसल्ट फ़ील कर रहे थे। मैंने भी उस दिन मदर से भावावेश में आकर ऐसी बातें पूछ लीं जो मुझे नहीं पूछनी चाहिए थीं। जिसका मुझे बाद में बहुत पछतावा हुआ।

मैंने उनसे पूछ लिया था कि सच क्या है? फ़ादर आख़िर इतने सालों से बार-बार यह बात क्यों पूछ रहे हैं? क्या उनकी बात सच है? वाक़ई आप के जीवन में कोई और शख़्स है। यदि आप उसके साथ ही ख़ुश हैं तो फ़ादर से डायवोर्स ले कर चली जाइए। रोज़-रोज़ का झगड़ा बंद करिए। मुझे और जस्टिन को भूल जाइए। हम दोनों भाई-बहन अपनी लाइफ़ मैनेज कर लेंगे। आप दोनों जो भी मैटर है उसे एक जैंटल पर्सन की तरह सॉल्व कर लें।

मेरी बात पर मदर शॉक्ड हुईं। बड़ी देर तक मुझे देखती ही रह गईं। फिर आँसुओं से भरी आँखों से ऊपर छत को देखती हुई बोलीं, "ओ जीसस मेरी कैसी परीक्षा ले रहा है तू। तू तो सब देख रहा है। जान रहा है। इस बच्ची को क्षमा कर देना। मैं आपसे बहुत प्रेम करती हूँ। मेरी इस प्रॉब्लम को ख़त्म कर दें। हमारी कितनी इंसल्ट हो रही है, यह आप देख ही रहे हैं।" मदर ने बड़ी देर तक प्रभु जीसस से प्रार्थना की। बार-बार की, कि वह उनकी सारी प्रॉब्लम सॉल्व कर दें। लेकिन ना जाने क्यों मैं ख़ुद को रोक नहीं पा रही थी। कुछ देर बाद मैंने अपना प्रश्न दोबारा पूछ लिया था। इस बार मदर नाराज़ हो गईं।

उस दिन पहली बार मुझ पर पूरी ताक़त से चीखती हुई बोलीं, "शटअप, शटअप एमी, तुम्हें मालूम है कि तुम क्या कह रही हो? तुम भी अपने फ़ादर की तरह मेरे कैरेक्टर पर प्रश्न कर रही हो। मुझे कैरेक्टरलेस कह रही हो। आख़िर तुम क्या चाहती हो?" उस समय मैं उनके ग़ुस्से से डर ज़रूर गई। लेकिन पुलिस, फ़ादर की हालत के कारण तब मन में जो फ़ील कर रही थी, उससे मैं बहुत ग़ुस्से में थी। मैंने ख़ूब बहस की। इस घटना के कुछ ही महीने बाद मेरा बीएससी प्रीवियस का फ़ाइनल एग्ज़ाम ख़त्म हो गया।

जिस दिन एग्ज़ाम ख़त्म हुआ, उस दिन मैं अपनी कई फ़्रेंड्स के साथ पिकनिक पर गई थी। शहर के उस वाटर पार्क में मैं तीसरी बार गई थी। वहाँ पर हम सभी फ़्रेंड्स ने बहुत मस्ती की थी। बहुत देर शाम को घर पहुँची। बहुत थक गई थी। बाहर दिनभर तरह-तरह की बहुत सी चीज़ें खाई थीं। इसलिए डिनर वग़ैरह कुछ नहीं किया।

उस दिन भी मदर की नाइट ड्यूटी थी। वह जल्दी-जल्दी सारे काम पूरे कर रही थीं। उनकी एक गंदी आदत थी बल्कि आज भी है, जिससे मैं और फ़ादर दोनों ही नफ़रत करते थे। वह काम करते समय भुनभुनाती रहती थीं। उस समय भी भुनभुुना रही थीं, फ़ादर को कोस रही थीं कि, "हर तरफ़ गंदगी फैलाते रहते हैं, लेकिन सफ़ाई में कहने को भी हाथ नहीं बँटाते। बच्चों को भी अपने जैसा बना दिया है।" जब वह बच्चों को कहतीं तो मुझे बुरा लगता। क्योंकि भाई जब-तक था तब-तक वह भी काम-धाम में हाथ बँटाता रहता था। मैं और वह अधिकांश काम कर डालते थे। फिर भी मदर....। भाई के जाने के बाद मैं और ज़्यादा काम करती थी कि मदर को आराम मिले। लेकिन फिर भी उनका भुनभुनाना पूर्ववत था।

पिकनिक के चक्कर में उस दिन मैं कुछ ज़्यादा काम नहीं कर पाई थी तो उस दिन मदर कुछ ज़्यादा ही भुनभुना रही थीं। मैंने उनसे कह दिया कि, आप को नाराज़ होने की ज़रूरत नहीं है। आप ऑफ़िस जाइए, मैं काम पूरा कर दूँगी। मेरी यह बात उनको बुरी लगी। मुझे झगड़ालू लड़की कहकर चीखने-चिल्लाने लगीं। मैंने सॉरी बोल दिया। फिर भी वह शांत नहीं हुईं, तभी उनके मोबाइल पर रिंग हुई। इस पर भी वह बहुत नाराज़ हुईं। कई अपशब्द कहते हुए कॉल रिसीव की। उधर से जो भी कहा गया उससे उनके चेहरे का रंग उड़ गया।

वह सिर्फ़ इतना बोलीं, अच्छा मैं तुरंत पहुँच रही हूँ। मैंने पूछा क्या हुआ तो वह इतना ही बोलीं, "तुम्हें भी मेरे साथ चलना है।" उनका ग़ुस्सा उनकी घबराहट देखकर मैं कुछ नहीं बोली, बस उनके साथ चल दी। रास्ते में उन्होंने बताया कि, "फ़ादर का एक्सीडेंट हो गया है। ऑफ़िस से आते समय वह रास्ते में एक खुले मैनहोल के कारण स्कूटर सहित गिर गए। साइड से निकलती एक दूसरी बाइक ने भी उनको हिट किया है, जिससे वह बहुत सीरियस हैं।" आधे घंटे में जब हम हॉस्पिटल पहुँचे तो सब कुछ समाप्त हो चुका था। हेड इंजरी ने फ़ादर की जान ले ली थी। स्कूटर चलाते समय उन्होंने हेलमेट लगाने के बजाय साइड मिरर पर लटका रखा था। हेलमेट लगाया होता तो बच जाते।

हमने जब हॉस्पिटल की चादर हटा कर उन्हें देखा तो उनका चेहरा चोटों से बुरी तरह भरा हुआ था। इस तरह सूजा हुआ था कि उन्हें पहचानना मुश्किल था। पूरा सिर कॉटन की मोटी लेयर और पट्टियों से ढका हुआ था। मदर उनके चेहरे को बड़ी देर तक एकटक देखती रहीं। उनकी आँखों से आँसू टपक रहे थे। होंठ सख़्ती से भिंचे हुए लग रहे थे। फ़ादर की हालत देखकर वह दोनों हाथों से मुँह दबाए रोए जा रही थीं। दो मिनट बाद ही वार्ड ब्वाय, नर्स ने आकर हमें हटा दिया। मैं मदर को सँभाले बाहर आ गई। पुलिस ने अपनी कार्रवाई शुरू कर दी। वही फ़ादर को एक्सीडेंट के बाद हॉस्पिटल लेकर पहुँची थी। डेड बॉडी को मोर्चरी में भेज दिया गया। हम घर आ गए।